महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएँ

भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकदामी विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सभी शाखाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली शीर्ष निकाय है। इसके उद्देश्यों में भारत में विज्ञान के संवर्धन सहित राष्ट्र कल्याण के लिए इसे लागू करना, वैज्ञानिकों के हितों की सुरक्षा करना, आपसी सहयोग को विकसित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ संबंध स्थापित करना और राष्ट्रीय विषयों पर विचार किए गए मतों को व्यक्त करना सम्मिलित है। अकादमी की स्थापना 07 जनवरी, 1935 को नेशनलन इंस्टीटयूट ऑफ साइंसिज ऑफ इंडिया के रूप में एशियाटिक सोसाइटी के परिसर में, कलकत्ता में हुई थी और सर लेविस फेर्मोर इसके संस्थापक अध्यक्ष (1935-36) थे। प्रोफेसर मेघनाथ साह प्रथम भारतीय अध्यक्ष (1937-38) के रूप में चुने गए थे। अक्तूबर, 1945 में तत्कालीन भारत सरकार ने इस संस्थान को विज्ञान की सभी शाखाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली भारत की प्रमुख वैज्ञानिक सोसाइटी के रूप में मान्यता दी। मई,1946 में दिल्ली विश्वविद्यालय के परिसर में स्थानांतरित हो गया।



पं.जवाहरलाल नेहरु अल्बर्ट आइंटाइन के साथ

भारत स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् वर्तमान, नई दिल्ली में बहादुर शाह जफ़र मार्ग पर वर्तमान कार्य स्थल को चुना गया और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 19 अप्रैल, 1948 को इस भवन की आधार शिला रखी। यह भवन 1951 में बन कर तैयार हो गया। जनवरी,1968 में भारत सरकार की ओर से भारत में इस संस्थान को इंटरनेशनल कॉन्सिल ऑफ साइंटीफिक यूनियन्स (इक्सू) की संबद्ध संगठन के रूप में पद दिया जाना एक मील का पत्थर था। सन 1970 में संस्थान का नाम भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी बदल दिया गया।
रजत जयंती
अकादमी ने अपनी रजत जयंती 30 दिसम्बर, 1960 से 1जनवरी, 1961 को मनाई । इस समारोह का उद् घाटन तत्कालीन वैज्ञानिक अनुसंधान और सांस्कृतिक मामलों के मंत्री हुमायूं कबीर ने की तथा इसे जवाहरलाल नेहरू ने भी संबोधित किया जो इस समारोह में एक अध्येता के रूप में भाग ले रहे थे। दो सेमीनार एक “एडवांसिंग फ्रोनटियर्स ऑफ लाइफ साइंसेज” और दूसरा “पार्टिकल फिजिक्स” विषय पर जयंती के प्रमुख आकर्षण थे।
 
स्वर्ण जयंती

श्रीमती इंदिरा गाँधी
डॉ. बी.पी. पाल के साथ

अकादमी के 50 वर्षों का समापन समारोह वर्ष 1984-85 के दौरान उत्सवों की एक शृंखला के रूप में आयोजित किया गया। समारोह का उद् घाटन 16 जनवरी, 1984 को विज्ञान भवन में इस उपमहाद्वीप और विदेशों से आए प्रतिष्ठित वैज्ञानिको और बहुत से गणमान्य व्यक्तियों की बहुत बड़ी जनसभा की उपस्थिति में भारत की स्वर्गीया प्रधानमत्री इंदिरा गाँधी(जो बाद में इसी वर्ष अध्येता चुनी गई थी) ने किया । विशिष्ट अतिथि और राष्ट्रीय वैज्ञानिकों द्वारा विशेष व्याख्यान और प्रस्तुतीकरण (जिनमें रॉयल सोसाइटी, लंदन के अध्यक्ष सर एन्ड्र्यु हैक्सले द्वारा दिया गया पाँचवाँ ब्लैकेट सेमोरियल व्याख्यान सम्मिलित है) स्वर्ण जयंती के उद् घाटन समारोह के एक अंश के रूप में आयोजित किए गए। प्रधान मंत्री ने अकादमी के भूतपूर्व अध्यक्षों और संस्थापक अध्येताओं और विदेशों से आए अतिथियों को विशेष स्मृति चिह्न भेंट किए।  
हीरक जयंती
अकादमी की हीरक जयंती वर्ष 1994-95 के दौरान बहुत सी क्रियाकलापों के साथ मनाई गई। इनमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार, विज्ञान से संबंधित प्रमुख विषयों पर प्रतिष्ठा रिपोर्ट की तैयारी और विशेष प्रकाशनों का संकलन शामिल हैं। हीरक जयंती की सबसे प्रमुख घटना 7 जनवरी, 1995 को विज्ञान भवन में भारत के राष्ट्रपति डॉ . शंकर दयाल शर्मा का अतिथि के रूप में एक यादगार समारोह में भाग लेना था। डाक विभाग ने एक स्मारक डाक टिकट और प्रमुख दिवस आवरण-पृष्ठ जारी किया और इन सब का लोकार्पण भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया गया। इस अवसर पर उनके द्वारा अकादमी के 16 विशेष प्रकाशनों का लोकार्पण भी किया गया। समापन समारोह इन विषयों पर अंतर्राष्ट्रीय विचार-विमर्श बैठकों के बाद किया गया था (1) न्यू ग्लोबल ऑर्डर : रोल ऑफ साइंस एण्ड टेकनोलॉजी (2) फंडिंग ऑफ साइंस एण्ड टेकनोलॉजी : रिसर्च एण्ड एजुकेशन । “सस्टेनेबल मैनेजमैन्ट ऑफ नैचुरल रिसोर्सिज” विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित किया गया जिसमें बहुत से अध्येताओं और विदेशी वैज्ञानिकों ने भाग लिया।

माननीय राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने 31 दिसम्बर, 1996 को भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के जुबली केंद्र का रमणीयतापूर्वक ढंग से उद् घाटन किया। अपने भाषण में उन्होंने उपदेश दिया कि हालांकि राष्ट्र स्वतंत्रता के 50 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है और अगली शताब्दी में कदम रखने के लिए तैयार है फिर भी हमें अपनी वैज्ञानिक नीति को अपनाने एवम् वैश्विक वास्तविकताओं में बदलाव करने के लिए प्रयास करना अनिवार्य है। इस अवसर पर अकादमी के भूतपूर्व अध्यक्षों और जुबली केंद्र के निर्माण से जुड़े संगठनों के प्रतिनिधियों को स्मृतिचिह्न भेंट किए गए ।